उत्तराखंड चुनाव में राजनीतिक दल भले ही राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर जनता से संवाद कर रहे हो किंतु विधानसभाओं में परिदृश्य इससे इतर दिख रहा है। जनता स्थानीय मुद्दों पर अपने प्रतिनिधियों की कार्यशैली को ज्यादा तवज्जो देती नजर आ रही है।
शायद यही कारण है राजपुर विधानसभा में वर्तमान विधायक खजान दास प्रति असन्तोष कुछ ज्यादा है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राजपुर सीट पर पैरासूट प्रत्याशी के रूप में खजान दास को टिकट दिया था मोदी लहर में भाजपा कांग्रेस से यह सीट वापस छीनने में कामयाब भी रही।
क्यों खजानदास से असंतुष्ट है क्षेत्रीय जनता-प्रचंड बहुमत की भाजपा की सरकार होते हुये भी खजान दास स्थानीय जनता के दिलों जगह बनाने में असफल जान पड़ रहे है।युवाओ का कहना है, हमने 2017 में मोदी को वोट दिया था खजान दास को नही, उनका आरोप है कि खजान दास ने क्षेत्र के विकास के बजाय व्यक्तिगत विकास पर ज्यादा ध्यान दिया है। आपदाओं के समय मलवा घुसने से जब हमारे घर बह गये तब विधायक जी मदद को कहीं नजर नही आये। हम बारिश में बेघर रो रहे थे और विधायक जी अपनी कोठी में आराम से सो रहे थे। मदद के समय कभी विधायक खजान दास नही पहुँचे। हाँ, फेसबुक के लिए फोटो खिंचवाने वह मेयर सुनील उनियाल गामा के साथ जरूर पहुँच जाते थे।
इस बार साथ खड़ी नही दिखती राजपुर क्षेत्र की जनता
हमे ऐसा विधायक चाहिये जो सुख दुख में जरूरत पड़ने पर जनता के साथ खड़ा हो, हमारे रोजगार की चिंता करे न कि दिखावे के लिये फोटो खिंचवाने वाला। देहरादून की प्रमुख विधानसभा में शुमार राजपुर में मलिन बस्तियों का नियमितीकरण एक प्रमुख मुद्दा रही है। नदियों के किनारे बसी बस्तियों को बरसात के समय काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।कोरोना ने जनता और विधायक के बीच खाई को और गहराया है।

खजान दास के प्रति असन्तोष अधिकांश राजपुर विधानसभा में दिखायी दिया। जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ तो खड़ी है किंतु वर्तमान विधायक के पक्ष में खड़ी नजर नही आ रही है जनता की यह नाराजगी खजान दास को 14 फरवरी कितनी भारी पड़ेगी इसका पता तो 10 मार्च को ही लगेगा।