आदि-अनादि काल से ही संसार मे अच्छाई एवं बुराई दोनो रही हैं। त्रेता युग मे अच्छाई के रूप में राम थे तो बुराई के रूप में रावण, द्वापर युग मे कृष्ण हुए तो कंस भी हुआ। अध्यात्म मानव को हमेशा से अच्छाई के मार्ग पर चलने व बुराई का प्रतिकार करने की प्रेरणा देता रहा है। मानव को अपनी सामर्थ्य के अनुरूप बुद्धि एवं विवेक से हमेशा बुराई का प्रतिकार करना चाहिये।
बुराई कहीं भी हो सकती है समाज मे ,अपनो में या अपने मे भी। वर्तमान समय मे देश की विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है। मनुष्य को जीवन के हर क्षेत्र में रोजाना न जाने कितने कंस और कौरव से सामना करना पड़ता है।
समाज मे नकारात्मकता भर रही है। कोई भी मनुष्य, अर्जुन की भांति बुराई के विरुद्ध इस रण में भावुकता से भर सकता है। ऐसे में देशवासियों को सामाजिक रण में जाने के लिये फिर से गीता उपदेश की आवश्यकता महसूस हो रही है।
ब्रहस्पतिवार 15 अक्टूबर को देवभूमि विचार मंच उत्तराखंड द्वारा वर्तमान परिवेश में श्रीमद्भागवत गीता के उपदेशों के अध्ययन की आवश्यकता विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का किया गया संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ शीला टावरी शिक्षाविद् तथा गीता प्रचारक एवं एके बियानी पूर्व प्राचार्य डीबीएस कॉलेज ने विचार प्रस्तुत किये। कार्यक्रम की अध्यक्षता सह प्रान्त संयोजक डॉ अंजलि वर्मा की तथा भगवती प्रसाद राघव, क्षेत्र प्रचारक प्रज्ञा प्रवाह पश्चिमी उत्तर प्रदेश ने की। अपने उद्बोधन में डॉ शीला टावरी ने श्रीमद्भागवत गीता की महत्ता और वर्तमान परिवेश में उनके उपदेशों की समाज में आवश्यकता विषय पर विस्तृत रूप से चर्चा की। डॉ बियानी ने भागवत गीता को युवा व्यक्तित्व के विकास के माध्यम के रूप में विकसित करने पर विशेष जोर दिया कार्यक्रम का संचालन रीना चंद्र ने किया इस अवसर पर डॉ अलका जोशी ,डॉ निशा रानी ,डॉ चैतन्य भंडारी ,डॉ एकता, डॉ एम एम गोसाई, डॉ अनीता चौहान, डॉ रवि दीक्षित सहित प्रदेश के प्रबुध् जन उपस्थित रहे।