– पीपीएस एसोसिएशन में सीधी भर्ती व विभागीय प्रोन्नति से उपाधीक्षक बने अधिकारियों के बीच हितों को लेकर बढ़ने लगी दूरियां।
– जल्द हो सकती है एसोसिएशन में टूट।
कुलदीप एस राणा…
उत्तराखंड पुलिस के भीतर फिर एक नया विरोध का ज्वालामुखी धधकने लगा है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा अपने जूनियर अधिकारियों को टारगेट किया जाना उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचना उत्तराखंड पुलिस में नई बात नही रही है। यही कारण है कि मिशन आक्रोश जैसी घटनाएं इस शांत प्रदेश के अनुशासित बल के भीतर घटित होती है। अबकी बार फिर इस आक्रोश की आग इंस्पेक्टर से प्रोन्नति पाकर पुलिस उपाधीक्षक बने अधिकारियों के भीतर सुलगने लगी है।
आपको बताते चले कि सूबे में भारतीय पुलिस सेवा एवं प्रांतीय पुलिस सेवा की अलग अलग एसोसिएशन बनी हुई है। जिसमे सीधी भर्ती व प्रमोशन से आये अधिकारी सदस्य के रूप में शामिल होते रहते है। वर्तमान में पीपीएस एसोसिएशन में लगभग 100 के करीब अधिकारी सदस्य है जिनमेसे लगभग 45 विभागीय प्रोन्नति से बने उपाधीक्षक सदस्य के रूप में शामिल है।
मसला यहां पीपीएस एसोसिएशन में विभागीय प्रोन्नति से उपाधीक्षक बने अधिकारियों के आत्मसम्मान से जुड़ा हुआ है। जिन्हें पीपीएस एसोसिएशन में व्यवहारिक रूप से तो शामिल कर लिया गया है किंतु प्रमोटी पीपीएस होने के कारण एसोसिएशन में उनसे तटस्थता का व्यवहार किया जाता रहा है।
सूत्रों से मिली पुष्ट जानकारी के अनुसार प्रमोटी पीपीएस अधिकारी एसोसिएशन के अध्यक्ष महासचिव व अपने समकक्ष पीपीएस अधिकारियों के रवैये से बेहद नाराज चल रहे हैं। इन अधिकारियों को एसोसिएशन में न तो कोई दायित्व दिया जाता है और न ही इनसे जुड़े मुद्दों को उचित तव्वजो दी जा रही है। इतना ही नही पीपीएस एसोसिएशन की बैठकों में भी प्रमोटी पीपीएस अधिकारियों के हितों से जुड़े मुद्दों को तवज्जो तक नही दी जाती है। यहाँ तक कि उनको बुलाया भी नही जाता है।एसोसिएशन की बैठकों में उचित सम्मान न मिलने से प्रमोटी अधिकारियों के मन मे आक्रोश पनपने लगा है। जिसकी परिणीति एसोसिएशन में टूट के रूप में हो सकती है। प्रमोटी पीपीएस अपनी अलग एसोसिएशन बनाने की दिशा में विचार करने लगे हैं।
अगर ऐसा होता है तो यह पुलिस महकमे में हितों को लेकर जूनियर अधिकारियों में टकराव को बढ़ावा देगा जो उत्तराखंड पुलिस की छवि से प्रभावित कर सकता है।