कुलदीप एस राणा, देहरादून….
तेजी से बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच सूत्रों के हवाले से यह खबर निकल कर आ रही है कि विधानसभा चुनाव-2022 से पहले भाजपा का राष्ट्रीय संगठन उत्तराखंड में बड़े बदलाव की फिराक में है। त्रिवेंद्र सिंह रावत की मुख्यमंत्री पद से छुट्टी के बाद उपजे राजनीतिक हालातों में प्रदेश संगठन स्तर पर संतुलन स्थापित करने के जिस नजरिये से अध्यक्ष पद पर मदन कौशिक को बैठाया गया था,
तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम में राष्ट्रीय संगठन कर्ताओं को अब लगने लगा है कि तत्कालीन परिस्थितियों में जल्दबाजी में लिया गया यह निर्णय आगामी चुनाव के लिहाज से क्षेत्रीय सन्तुलन स्थापित करने की दिशा में कारगर साबित नही हो पा रहा है। जो आगे चलकर नुकसान का कारण बन सकता है मदन कौशिक हरिद्वार जिले से विधायक हैं राजनीतिक धारणाओं में उन्हें मैदानी मूल का नेता माना जाता रहा है। पर्वतीय प्रदेश के रूप में विख्यात उत्तराखंड में मैदानी ध्रुवीकरण के अनेक प्रकरण पूर्व में राज्य की राजनीति में उभरकर सामने आये है। विधानसभा वार नजर डालें तो गढ़वाल मंडल के पांच जिलें चमोली, रुद्रप्रयाग,पौड़ी,उत्तरकाशी एवं टिहरी में 20 सीटें हैं वहीं मैदानी क्षेत्रान्तर्गत देहरादून एवं हरिद्वार जिलों में विधानसभा की 21 सीटें हैं। देहरादून की लगभग सभी सीटों पर व हरिद्वार की अधिकांश सीटों पर पहाड़ी वोटर चुनाव को प्रभावित करने की क्षमता रखते है।
कुमायूं मंडल के पर्वतीय जिलों पिथौरागढ़, चम्पावत, बागेश्वर, हल्द्वानी एवं अल्मोड़ा से 20 एवं मैदानी उधमसिंह नगर जिले से 9 सीटें उत्तराखंड विधानसभा में है। वर्तमान में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्करधामी भी उधमसिंह नगर की खटीमा सीट से विधायक है हालांकि वह सीमांत जिला पिथौरागढ़ के मूल निवासी हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल से निशंक को हटाये जाने के बाद केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री बनाये गये अजय भट्ट भी कुमायूं मंडल से है।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के पुराने आंकड़ों पर नजर डालने से स्पस्ट होता है कि तुलनात्मक रूप से भले ही उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में कम सीटें है और मैदानी जिलों में अधिक किन्तु चुनावी रण में मैदान का वोटर पहाड़ को नही अपितु पर्वतीय वोटर्स मैदानी जिलों की सीटों को जरूर प्रभावित करते हैं। ऐसे में क्षेत्रीय संतुलन के दृष्टिकोण से अध्यक्ष पद पर मदन कौशिक की नियुक्ति भाजपा रणनीतिकारों के चुनावी अर्थमैटिक को प्रभावित कर सकती है।
वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में हुये सांगठनिक बदलाव ने भी भाजपा के गणित को प्रभावित किया है।
लिहाजा राष्ट्रीय संगठन प्रदेश में एक नये अध्यक्ष की तलाश में जुट गया है जिसका चेहरा निर्विवाद होने के साथ साथ गढ़वाल-कुमायूं, पहाड़-मैदान व ब्राह्मण-ठाकुर के जातीय गणित को भी साध सके।