स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैण मे ध्वजारोहण कर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जहां एक नया इतिहास रच दिया है वहीं कुछ दिन पूर्व क्षेत्रीयभाषा में मुख्यमंत्री से सवाल कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत औऱ उनकी टीम को भी करारा जवाब दिया है। गैरसैण अब काँग्रेस ही नही भाजपा के भी अनेक बयान बीरों के हाथ से फिसल गया है।जिसकी बौखलाहट अखबारों में नेताओं के राजनीतिक बयानों से स्पस्ट समझी जा सकती है। पर्वतीय क्षेत्र की अवधारणा, इसकी विषम भौगोलिक परिस्थितियां एवं पिछड़ेपन के परिपेक्ष में गैरसैण का अस्तित्व मात्र एक भू क्षेत्रफल का नहीं है यह उत्तराखंड राज्य आंदोलन की आत्मा रही है। राज्य की अवधारणा में गैरसैण का एक विशिष्ट स्थान है जो विकास के मानकों पर राज्य को संतुलन प्रदान करता है। जनता का भी मानना है कि गैरसैंण को लेकर हुई तमाम राजनीतिक उठापटक से इतर त्रिवेंद्र रावत द्वारा ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा ने राज्य में राजनीति के समीकरणों को बदल कर रख दिया हैं। अब हर कोई गैरसैण की माला जप रहा है। क्योंकि यह स्पस्ट हो गया है कि उत्तराखंड में सत्ता के शीर्ष पर पहुचने का नया मार्ग अब यही से होकर गुजरेगा। यह सत्ता के तराजू पर पहाड़ को संतुलन प्रदान करता है। भविष्य में राजनीतिक सत्ता पर जिसका संतुलन होगा विकास के मानक भी उसी आधार पर तय होंगे। जिसका दबदबा होगा आर्थिक योजनाएं भी वही तय करेगा। इससे आर्थिक योजनाओं का फोकस पूर्ण रूप से बदल जायेगा। जो अभी तक जनभावना के अनुरूप नही माना गया है।
ध्वजारोहण के अवसर पर पूर्वाग्रह एवं निजी स्वार्थों को दरकिनार कर क्षेत्र के विकास को लेकर की गई घोषणायें गैरसैण पर त्रिवेंद्र रावत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती है। यह एक सराहनीय कदम है जिससे एक उम्मीद भी जगती है।
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ग्रीष्मकालीन राजधानी में मुख्यमंत्री के भाषण का विश्लेषण किया जाना आवश्यक है।क्योंकि यह भाषण गैरसैण पर मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेंद्र रावत की दूरदर्शिता को भी दर्शाता है।
गैरसैण को जनभावना का प्रतीक बता कर मुख्यमंत्री ने यह स्पस्ट कर दिया है कि वह उत्तराखंड की जनभावना को महसूस करते है। स्वाभाविक है कि गैरसैण राज्य की जनता के साथ साथ उनके दिल में भी बसता होगा। जिसे वह स्वीकारते भी है कि लोकतंत्र में जनभावनाएं सर्वोपरि होती है।गैरसैण से ही समूचे राज्य का विकास किया जा सकता है यह कह कर उन्होंने कही न कहीं क्षेत्रिय संतुलन को भी साधने का प्रयास किया है। जो एक कुशल राजनीतिज्ञ की पहचान भी है। आम धारणा में विकास योजनाओं में पहाड़ का प्रतिनिधित्व को असंतुलित महसूस किया जाता रहा है।
क्योंकि पहाड़ वासियों के मानना है कि विकास की गंगाअगर पहाड़ ने निकलती है तो वह संतुलन के साथ राज्य का समग्र विकास कर सकती है जिससे पिछड़ेपन से अभिशप्त पहाड़ समृद्ध हों सकेंगे।
हमारी सरकार स्वरोजगार को बढ़ावा दे रही है हम युवाओं को स्वरोजगार की दिशा में ले जाने को संकल्पबद्ध है।ऐसा करने से पहाड़ बसेगा। युवाओं को स्वरोजगार के क्षेत्र में प्रेरित करने की दिशा मुख्यमंत्री स्वरोजगार के अंतर्गत अनेकों योजनाओं लाई गई है जिनके माध्यम से आत्मनिर्भर युवा आत्मनिर्भर उत्तराखंड की दिशा में एक चमत्कारिक प्रयास हो सकता है। यह त्रिवेंद्र रावत की उस सोच को प्रदर्शित कर रहा है जो वह राज्य के युवाओ को लेकर सोचते होगें।।हालाकिं युवाओं में सरकार की योजनाओं के धरातल पर पहुचने और पनपने देने को लेकर नॉकरशाही की ईमानदारी को लेकर संशय भी है।
रोजगार वर्ष का हश्र भी उनके सामने है। ऐसे में युवाओं का भरोसा जितना त्रिवेंद्र रावत के लिए बड़ी चुनोती है।
मुख्यमंत्री कहते हैं कि उत्तराखंड को उसके प्राकृतिक स्वरूप में राज्य के चहुमुंखी विकास करने का का कार्य वह कर रहे हैं हालांकि नदियों के पुनरजीविकरण की दिशा में उठाये सराहनीय कदम है किंतु धरातल पर कार्य कितनी ईमानदारी से हो रहा है यह सुनिश्चित करना भी सरकार की जिम्मेदारी है।
जनप्रतिनिधियों के रिवर्स पलायन पर को लेकर त्रिवेंद्र रावत ने नेताओ पर जहां तीखा व्यंग्य कसा है वहीं उन्हें आईना भी दिखाया हैं क्योंकि पहाड़ की तस्वीर बदलने के लिए यह बेहद आवश्यक है। जब जनप्रतिनिधि ही पलायन कर जायेगे तो पहाड़ की तस्वीर कैसे बदलेगी। पहाड़ के संतुलित विकास के लिए राजनीतिक शक्ति संतुलन का होना भी आवश्यक है जो रिवर्स पलायन से ही सुधरेगा। प्रदेश के राजकीय कर्मचारियों में भी गैरसैण को लेकर उत्साह है अधिकांश कर्मचारी-अधिकारी तो राज्य हित में वहां काम करने का मन भी बना चुके है। यह उत्तराखंड के उज्ज्वल भविष्य के लिए अच्छे संकेत माने जा सकते हैं।
अपनी कोशिशों से राज्य को विकास की दिशा में त्रिवेंद्र रावत कितना आगे ले जा पाते है यह तो आने वाले समय में दिख ही जायेगा साथ ही जनता का कितना समर्थन उन्हें प्राप्त होता है यह भी आगामी विधानसभा चुनाव में पता चल जायेगा। किन्तु गैरसैण पर लिए गए निर्णयों के लिए क्या मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की प्रसंशा नही की जानी चाहिए है?