कुलदीप एस राणा……..
तीरथ रावत के नेतृत्व को 100 दिन पूर्ण हो गये चुके हैं कोरोना संकट के ऐसे दौर में जब पूरा विश्व महामारी से जूझ रहा है। मुख्यमंत्री तीरथ रावत की शुरुवात ही चुनोतियों के पहाड़ चढ़ने से हुई है। समग्र नजरिये से देखा जाय तो 100 दिन में कार्यों का आंकलन करना व्यवहारिक दृष्टि से कितना सार्थक होगा यह सरकार के निर्णयों के जन मुल्यांकन से ही संभव है। अक्सर सहज एवं शांत नजर आने वाले तीरथ रावत अपनी पूर्ववर्ती सरकार के दौर में जनता के मन मे उपजे असंतोष को दूर करने में काफी हद तक कामयाब हुये है। जनता तीरथ रावत को सहज एवं ईमानदार मुख्यमंत्री मानती है। हालांकि कुछ बयानों से उपजे हालातो के बावजूद जनता का कहना है कि उनका सीएम शरीफ आदमी है। गैरसैण कमिश्नरी व चारधाम देवस्थानम बोर्ड के मसले पर पुनर्विचार की बात कह कर तीरथ ने साफ कर दिया था कि वह जनता के मुख्यमंत्री है सूबे की नौकरशाही को शुरुवात में दिये सन्देश से भी यह बात उन्होंने स्पस्ट रूप से कही कि “सरकार जनता के लिए है।” ,”तुम फ़ाइल पढ़ो मैं जनता को पढ़ता हूँ।”, “सरकार जनता को खुश करने के लिए है दुखी करने को नही है।” इन बयानों से तीरथ रावत की मंशा भी स्पस्ट हो गयी। पीपीई किट पहन कर कोरोनो मरीजों से मिलने आइसीयू वार्ड में जाना व अनाथ हुए बच्चों के लिए “वात्सल्य” योजना को शुरू करना जनता को भावात्मक रूप से जरूर छू गया।
प्रचंड जनादेश से उपजी उम्मीदों का बोझ एवं नेतृत्व परिवर्तन से प्राप्त सत्ता में जनता की अपेक्षायें पहले से ज्यादा है। तात्कालिक चुनोती कुंभ का सफल संचलान करने में वह कामयाब रहें हैं। जनता के बीच निजी लोकप्रियता और उनका भरोसा हासिल करने का सफल प्रयास तीरथ ने इन 100 दिनों में किया है। यहाँ तीरथ रावत को यह ध्यान रखना होगा कि नौकरशाही पर पकड़ और सूबे के विकास के विजन पर उन्हें बेहतर प्रदर्शन करना होगा। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव का नेतृत्व भले ही भाजपा करेगी लेकिन उनके कार्य ही जनता में उनकी ब्रांडिंग जरूर करेंगे। जो उनके मजबूत भविष्य की नींव सबित होगी।