उत्तराखंड में भी कोविड-19 के उपचार में आईसीएमआर की अनुमति के बाद से प्लाज्मा थेरैपी का उपयोग किया जा रहा है
-प्रो आशुतोष सायना
प्रिंसिपल दून मेडिकल कालेज
इन दिनों कोरोना के उपचार में प्लाज्मा थेरेपी काफी सुर्खियों में है। आम जनमानस में यह धारणा बनती जा रही है कि प्लाज्मा थेरेपी से कोविड-19 महामारी से संक्रमित मरीज तुरंत स्वस्थ हो जाता है। इसे लेकर देश-दुनिया मे काफी रिसर्च भी चल रहीं हैं। कोरोना महामारी के उपचार में यह प्रक्रिया काफी कारगर साबित हो रही हैं।
प्लाज्मा थेरेपी क्या है? इंसान के शरीर से कैसे प्लाज्मा निकाला जाता है? इस संदर्भ में हमारे संवाददाता ने राजकीय दून मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल प्रो.आशुतोष सयाना से बात की। प्रो.सयाना ने बताया कि कोविड-19 के उपचार हेतु आईसीएमआर ने प्लाज्मा थेरैपी हेतु अनुमति दी हुई है। इसके अंतर्गत उपचार उपरान्त पूर्ण रूप से स्वस्थ हो चुके कोरोना पॉजिटिव लोगों के शरीर से एफेरेसिस मशीन के माध्यम से ब्लड से प्लाज्मा अलग किया जाता है। आईसीएमआर का मानना है कि उपचार से पूर्ण स्वस्थ हुए लोगों के शरीर मे कोविड-19 वाइरस से लड़ने हेतु एंटी बॉडी तैयार हो जाती है, जो अन्य संक्रमित मरीज के उपचार में उपयोग में लायी जा सकती है। इस प्रकार कोरोना संक्रमित शरीर को वाइरस से लड़ने हेतु एंटीबॉडी मिल जाती है। एफेरेसिस मशीन से प्लाज्मा को अलग कर माइनस टेंपरेचर में रखा जाता है। जरूरत पड़ने पर संक्रमित मरीज के शरीर मे चढ़ाया जाता है।
दून मेडिकल कालेज में भी ऐफेरेसिस मशीन उपलब्ध है। हम कोरोना के उपचार में प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग कर रहे है।
हालांकि यह एक तरह से ट्रायल ही है, क्योंकि अभी तक दुनिया मे कोरोना के उपचार को लेकर कोई पुख्ता थ्योरी उभरकर सामने नही आई है। लोग प्लाज्मा थेरेपी से स्वस्थ हो रहे है। लिहाजा आईसीएमआर ने इसके उपयोग की अनुमति दे रखी है। इसलिये कोरोना के उपचार में लगे हॉस्पिटल्स इसका उपयोग संक्रमितों के उपचार में कर रहे है। इससे शरीर को किसी प्रकार का नुकसान हो रहा हो ऐसे कोई भी लक्षण अभी तक उभरकर सामने भी नही आये है। यह उपचार हेतु सुरक्षित तरीका है।
प्रो सयाना ने कोरोना से स्वस्थ हो चुके लोगों से अपील भी की ,कि गंभीर संक्रमितों की जान बचाने हेतु ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोग आगे आये और प्लाज्मा दान करें।