कुलदीप एस राणा,देहरादून………….
पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री पद सम्भाले अभी ज्यादा समय नही हुआ है। बीते 44 दिनों में मुख्यमंत्री ने सूबे की ब्यूरोक्रेसी में व्यापक स्तर फेरबदल किये है। अब तक वह अधिकारियों के लगभग 90 से ज्यादा विभागों फेरबदल कर चुके हैं सवाल उठता है कि इन फेरबदल से क्या वह जनता का विस्वास अर्जित कर पाने में सफल हो पाएंगे। जबकि जनता खुद मुख्यमंत्री से सवाल कर रही है कि इस प्रकार फेरबदल से क्या वह सूबे की भ्रष्ट हो चुकी ब्यूरोक्रेसी पर लगाम लगाने में कामयाब होंगे ?
भ्रष्टाचार क्या बिना सियासी संरक्षण के पनप सकता है?
उत्तराखंड में सरकार पर नौकरशाही हावी होने की चर्चायें हमेशा से सुर्खियों में रही है। नौकरशाह- नेताओ ,विधायकों की तो छोड़िये मंत्रियों की भी नही सुनते है। जो अनेक अवसरों पर टकराव के रूप में सामने भी आये है। सत्ता का अपना स्वभाविक स्वभाव है कि वही सम्पूर्ण शक्ति को अपने में समेट कर रखना चाहता है इस कार्य उसकी मदद करते हैं उसके चहेते नौकरशाह।
कहा जाता है कि भ्रष्ट अधिकारी नेताओं के कमाऊ पूत होते है। सत्ता में चाहे कोई भी दल बैठा हो ऐसे नौकरशाहों को खूब संरक्षण मिलता है। चुनाव के चंदे से लेकर पार्टी के फंड तक की व्यवस्था की जिम्मेदारी यह नौकरशाह खूब निभाते है।
शायद इसी लिए दागी नौकरशाहों को उत्तराखंड में पदोन्नति दे जाती होगी! यही कारण है कि भ्रष्टाचार के तालाब की यह बड़ी मछलियां कभी भी शिकंजे में नही फंसती है।विगत 21 सालों में भ्रष्ट नौकरशाहों ने इस नव निर्मित राज्य के विकास के फंड को खूब ठिकाने लगाया। केंद्र की योजनाओं से लेकर राज्य सरकार की योजनाएं तक जनता तक हकीकत में शायद ही पहुँची हों किन्तु भ्रष्टाचार से इनका फंड भ्रष्ट नेताओं और नौकर शाहों के खातों तक खूब पहुँचा है।
विगत लगभग सवा चार साल में सूबे में 57 विधायकों की प्रचंड सरकार ने कर्मचारियों पर खूब सख्ती दिखाई किन्तु इसका 1 प्रतिशत प्रशासनिक सुधार की दिशा प्रयास किया हो ऐसा कोई प्रमाण जनता को देखने को नही मिला है। भ्रष्टाचारी के साथ-साथ भ्रष्टाचार भी स्थानांतरित होता रहता है। और एक अहम विभाग से हटाकर दूसरे अहम विभाग में बैठा दिया जाता है। कार्यवाही के नाम सख्त निर्णय लेने का माद्दा अभी तक तो किसी मुख्यमंत्री में देखने को नही मिला है जीरो टॉलरेंस की बात करने वाले मुख्यमंत्री काल में तो तमाम विरोध के बावजूद भ्रष्टाचार शिरोमणियों को शीर्ष पदों पर बैठाया गया। एन एच 74 भ्रष्टाचार में दोषी नौकरशाहों पर कार्यवाही का आडम्बर सारे देश ने देखा है।
वहीं पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोरोना काल मे लापरवाही बरतने पर एक जिलाधिकारी को न सिर्फ सस्पेंड किया बल्कि राजकीय सेवा से बर्खास्त तक कर डाला था।
सूबे में प्रशसनिक सुधार आयोग की सिफारिशें न जाने किन अलमारियों में धूल खा रही होंगी। सवाल उठता है कि क्या प्रशासनिक अधिकारियों के दायित्वों में फेरबदल से ही परिवर्तन लाया जा सकता है।अगर ऐसा है तो फिर कार्यवाही का दिखावा क्यों? जब जब प्रचण्ड बहुमत में कमजोर नेतृत्व रहेगा जनता की आंखों में धूल झोंकने का यह खेल भी यूँ ही चलता रहेगा।
उत्तराखंड वासियों ने भ्रष्टाचार मुक्त विकास के लिये वोट किया था। इतिहास साक्षी है कि इतने प्रचंड बहुमत के साथ कभी किसी प्रदेश में कोई राजनीतिक दल सत्ता में आया हो। आशावादी माहौल में जनता जिस भौतिक विकास के मॉडल के लिए विदेशों को देखा करती थी उस विकास की उम्मीद उसे उत्तराखंड में जगी थी। परन्तु हकीकत सबके सामने है।
इन तमाम फेरबदल के बाद जिलों से लेकर शासन के सभी विभागों में पुष्करधामी सरकार की पसंद के नौकरशाह नियुक्त किये गये है देखना यह होगा कि सुशासन और विकास अब किस ऊंचाई को छूता है।