“मतभेद मुद्दों पर होते हैं व्यक्तित्व पर नही ! उत्तराखंड सरकार से हमारी लड़ाई मात्र उन नीतियों पर चल रही है जिन्हें कर्मचारी अपने हित मे नही महसूस कर रहे हैं। हमारे पास निर्णायक क्षमता रखने वाले मुख्यमंत्री है। जिन्होंने मात्र तीन वर्ष के कार्यकाल में राज्यहित में राजनीतिक एवं व्यक्तिगत हित से ऊपर उठ कर जिस प्रकार निर्णय लिये है उत्तराखंड के पिछले किसी मुख्यमंत्री में यह बात देखने को नही मिली है। “यह कहना है सचिवालय सचिवालय संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी का ।
आरक्षण व अन्य कर्मचारी हित के मुद्दों पर सरकार के साथ मतभेद को लेकर सचिवालय संघ के अध्यक्ष से चर्चा की गई तो कर्मचारी हितों को लेकर बेहद आक्रमक नजर आने वाले दीपक जोशी का एक अलग बेहद गंभीर व संजीदा व्यक्तित्व भी उभर कर सामने आया। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की कार्यशैली व निर्णय लेने की क्षमता के कायल दीपक जोशी ने बेबाक शब्दों में कहा कि कर्मचारियों का सरकार से मुद्दों पर गतिरोध व सामंजस्य दोनो एक दूसरे के पूरक है। उत्तराखंड का निर्माण आरक्षण के विरुद्ध आंदोलन से प्रारंभ हुआ था राज्य की 80 फीसदी जनता आरक्षण के दंश को झेल रही है। उसी लड़ाई को जनरल-ओबीसी संगठन आगे बढ़ा रहा हैं अभी तक जो भी निर्णय हुए है वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हुए हैं। जिसमे प्रमोशन में रिजर्वेशन के बिना पदोन्नति खोलने का आदेश सरकार ने किया है।
सीधी भर्ती में रोस्टर, एट्रोसिटी एक्ट, क्रीमीलेयर आदि को लेकर हमारी लड़ाई जारी है। इसमें कोई दोराय नहीं कि हमारे मुख्यमंत्री ने जिस प्रकार जनहित एवं राज्यहित में अनेक साहसिक निर्णय लिए है ऐसे में कर्मचारियों की भी उनसे उम्मीदें बढ़ जाती है।
उत्तराखंड के 19 वर्षों इतिहास में यह पहला अवसर था जब भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में किसी मुख्यमंत्री ने कड़े कदम उठाते हुए एनएच-74 वाले मामले में जांच में प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए दो आईएएस अधिकारियों को सस्पेंड किया। आयुर्वेद विवि के कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा का प्रकरण हो या समाज कल्याण विभाग का छात्रवृत्ति घोटाला,आरोपी अधिकारीयों को जेल की हवा खानी पड़ी है। अभी तक राज्य में हुए 9 मुख्यमंत्रीयों में से किसी ने भी यह प्रयास नही किया था जो वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्य आन्दोलनकारियों व लाखों प्रदेशवासियों के सपने को साकार करते हुए जनभावनाओं के अनुरूप गैरसैंण को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने निर्णय लेकर किया है यह अब तक का सबसे साहसिक व ऐतिहासिक निर्णय है।
राजनीतिक लाभ हानि से ऊपर उठ कर चारधाम देवस्थानम बोर्ड का गठन किया जाना उनकी निर्णायक क्षमता को दर्शाता है।
कोरोना महामारी के काल मे अन्य राज्यों की तुलना में उत्तराखंड एक मात्र ऐसा राज्य रहा है जहां मुख्यमंत्री की दूरदर्शिता के साथ ही कर्मचारियों के प्रयासों से इस महामारी को फैलने से रोकने में काफी हद तक सफलता हासिल की है। साथ ही फिजूल खर्ची को नियंत्रित करने की दिशा में अधिकारियों की विदेश यात्रायों पर रोक लगा सरकारी धन के दुरूपयोग को रोकने को लेकर बेहद अहम कदम उठाया है।कर्मचारी संगठन उनके इन तमाम राज्यहितकारी निर्णयों पर बधाई देता है साथ ही सवाल भी करतें है कि कर्मचारियों के हित मे भी मुख्यमंत्री जी कुछ साहस दिखायें। कर्मचारियों संगठन व सरकार के बीच चोली दामन का साथ है।
कभी गतिरोध तो कभी सामंजस्य,लेकिन यह स्थायी नही है, लड़ाई अभी लंबी है। जनहित में साहसिक निर्णय लेने वाले मुख्यमंत्री से कर्मचारियों की उम्मीदें भी बढ़ गयी है।सरकार राज्य की 80 प्रतिशत आबादी का दुखदर्द भी देखे। प्रमोशन में आरक्षण को जड़ से खत्म कर राज्य के बेरोजगार युवाओं की योग्यता का सम्मान करते हुए उनकी पीड़ा को समझे और थोड़ा हम कर्मचारियों की तरफ भी ध्यान दे।
दीपक ने मुख्यमंत्री के जनहितकारी साहसिक निर्णयों पर अपनी बेबाक राय रखते हुये राज्यहित में सरकार के सहयोग की बात कही, साथ ही कोरोना काल कर्मचारियों के डीए फ्रीज करने से लेकर सैलरी में कटौती के सरकार के निर्णय के प्रति नाराजगी भी प्रदर्शित की। और उक्त विषय पर चर्चा करने की बात कही। सचिवालय संघ के अध्यक्ष ने राज्य के राजस्व वृद्धि को लेकर भी राज्यहित में सरकार को सहयोग की बात रखी।