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    गैरसैंण: ग्रामीण आंदोलनकारियों पर पुलिस के लाठीचार्ज पर सवाल

    नंदप्रयाग घाट सड़क चौड़ीकरण की मांग कर रही स्थानीय जनता पर पुलिस के लाठीचार्ज उठ रहे है सवाल।

    सड़क की अपनी बुनियादी मांग को लेकर गैरसैण जा रहे ग्रामीण आंदोलनकारियों पर दिवालीखाल में हुये पुलिस लाठीचार्ज की चहुँ ओऱ निंदा हो रही है।जनता सरकार से पूछ रही है यह कैसा रामराज्य है ? उत्तराखंड का इतिहास रहा है कि अपने हकहकूकों के लिए राज्यवासियों को हमेशा संघर्ष करना पड़ा है। लेकिन इसके लिए कभी हिंसा का सहारा नही लिया, तो फिर 1 मार्च को ऐसा क्या हुआ कि चमोली जिले के घाटवासियों का यह संघर्ष अचानक टकराव में बदल गया। जनसंघर्ष में जब-जब राजनीतिक रोटियां सेंकने का प्रयास किया जाता है, तब-तब जनसंघर्ष ,जनसंघर्ष न रह कर राजनीतिक नफा-नुकसान का खेल बन जाता है।जिसमे नुकसान हमेशा जनता को ही उठाना पड़ता है।

    लगभग तीन माह से नंदप्रयाग-घाट ब्लॉक की सड़क की चौड़ाई बढ़ाये जाने की मांग को लेकर महिलाये, बुजुर्ग, युवा आंदोलनरत है। ऐसा नही है कि इस आंदोलन और इसके कारणों की जानकारी से जिला प्रशासन, उत्तराखंड शासन व सरकार अनभिज्ञ हो। उक्त लाठीचार्ज के बाद जनता और सरकार आमने सामने है।

    सोशलमीडिया पर दो तरह के विडियो प्रसारित हो रहे हैं। जिसे देख कर राज्य की जनता भ्रमित हो भिन्न भिन्न राय कायम कर रही है।

    एक,जिसमे पुलिस आंदोलकारियों के ऊपर लाठीचार्ज करने जा रही है ।दूसरा, जिसमे कुछ युवा जिनमे महिलायें भी शामिल हैं पुलिस पर पथराव कर रही है।

    सच क्या है?

    जनता का सवाल दोनो से है क्या प्रशासन कानून की आड़ में बलप्रयोग करके स्थानीय जनता की आवाज उसकी न्यायसंगत मांग का दमन करना चाहता है।इस पूरे घटनाक्रम में जिला अधिकारी स्वाति भदौरिया व पुलिस कप्तान यशवंत चौहान की कार्यशैली पर भी सवाल उठ रहे हैं? जब आंदोलनकारी जंगलचट्टी के पास लगे पुलिस बैरियर को पार करके दीवाली खाल पहुँच चुकी थी और एक बार फिर आंदोलनकारी और पुलिस आमने सामने आ गये थे उस समय स्थिति को संभालने के बजाये उक्त दोनों अधिकारी कहाँ थे? स्थिति की गंभरता को देखते हुए क्या दोनो को घटनास्थल पर मौजूद नही रहना चाहिए था? विधानसभा सत्र के लिये सरकार और नॉकरशाही पुलिस उच्चाधिकारियों की पूरी फ़ौज गैरसैण में उपस्थित है। ऐसे में इस प्रकार की घटना क्या जनता और सरकार के बीच खाई पैदा नही कर रही है।

    दूसरा,लोकतंत्र में अपनी जायज मांगों के लिए हिंसा के सहारा लेना कहाँ तक उचित है। हो सकता है जिन पुलिस कर्मियों पर पथराव किया जा रहा था वह जिले के स्थानीय वासी भी हो सकते है,जिन्हें सत्र की सुरक्षा को लेकर वहां ड्यूटी पर तैनात किया गया होगा। आप किसका नुकसान कर रहे है?

    इस पूरे घटनाक्रम में चोट दोनो को आई है सिर जनता के भी फूटे है और पुलिस के भी।

    7 फरवरी को ऋषिगंगा उत्पन्न हुए आपदा के हालात में यही पुलिस राहत एवं बचाव करती नजर आ रही थी। फर्क सिर्फ इतना है। उनके ऊपर निर्देश देने वाले कौन है।

    विधानसभा चुनाव को अब ज्यादा समय नही है लोकतंत्र में सरकार चुनने का हक लाठी खाने वाली जनता और लाठी चलाने वाले पुलिस कर्मियों दोनो को है। यह सूबे की सरकार को तय करना है उन्हें जनता को क्या देना चाहिये उनकी सड़क या पुलिस की लाठी। लोकतंत्र में सरकार का प्रिय कौन है? स्थानीय जनता या अक्षम अधिकारी। अब सब कुछ सरकार पर ही निर्भर करता है।

    मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत

    मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत

    सभी ब्लॉक मुख्यालयों पर जिन पर ट्रैफिक कम है उन्हें डेढ़ लेन से व जहां ट्रैफिक अधिक है उन जनपदों को डबल लेन से जोड़ने की घोषणा वह पिछले माह अल्मोड़ा में कर चुके है ,चमोली जिले भ्रमण के दौरान भी मैंने यह बात दोहराई थी। लेकिन कुछ लोग अस्थिरता एवं भ्रम फैलाने का कार्य कर रहे हैं। हालांकि मुख्यमंत्री ने उक्त घटनाक्रम की मजिस्ट्रेट जाँच के आदेश दे दिए है।

    देखे इस जांच में दोषी कौन पाया जाता है और सरकार उस पर क्या कार्यवाही करती है।

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