कुलदीप एस राणा…..
ब्यूरोक्रेसी में कर्मचारियों के हितों को लेकर नकारात्मक रवैया क्यों?
उत्तराखंड में ब्यूरोक्रेसी का नजरिया राज्य के कर्मचारियों के प्रति कितना सकारात्मक है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है कि सूबे में अटल आयुष्मान स्वास्थ्य बीमा योजना को लागूं हुए दो वर्ष से भी अधिक का समय बीत चुका है लेकिन कर्मचारियों को इसका उचित लाभ अभी तक नही मिल सका है।
आईएएस अधिकारियों का कर्मचारियों के प्रति दोहरे मापदंड का आलम यह है कि खुद के लिए तो केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना के लाभ के साथ साथ उत्तराखंड राज्य में भी अपने हित मे शासनादेश जारी कर अपने एवं परिवार के लिए चिकित्सा प्रतिपूर्ति की व्यवस्था सुनिश्चित कर रखी है ताकि उन्हें एवं उनके परिवार को चिकित्सा के समस्त लाभ निर्बाध मिलते रहे।
दोहरे लाभ को लेकर कोई नियम कानून उनके आड़े नही आता है। वही जब राज्य कर्मचारियों के स्वास्थ्य सुरक्षा से जुड़े हितों की बात आती है तो सारे कायदे कानून कर्मचारियों के विरुद्ध हो जाते है।
अटल आयुष्मान योजना लागू होने के लंबे अंतराल के बाद जब कर्मचारियों के गोल्डन कार्ड व्यवस्था को सुव्यवस्थित कर लागू करने में इतनी अड़चने क्यों हैं। गोल्डन कार्ड व्यवस्था में कमियों का खामियाजा उचित उपचार व्यवस्था न मिलने से अनेक कर्मचारी अपनी जान भी गंवा चुके है।
आश्चर्य करने वाली बात यह कि राज्य की सरकार इस बीमा योजना का लाभ सभी कर्मचारियों को देना चाहती है लेकिन ब्यूरोक्रेसी ने इस पर अनेक पेच लगा दिये है।
जब स्यंम के हित बात आती है कोई नियम कायदे आड़े नही आते हैं कहीं से पुराना कोई नियम निकाल कर उसे तोड़मरोड़ कर अपने हित मे बस एक आदेश और सारी समस्याएं हल लेकिन कर्मचारियों के हितों को लेकर हमेशा नकारात्मक रवैय्या क्यों? ब्यूरोक्रेसी के कारण ही उत्तराखंड राज्य की छवि हड़ताली प्रदेश की बन गयी है यहां जब तक हड़ताल न करो इनके कान में जूं तक नही रेंगती है। यह कहना है विभिन्न कर्मचारी संगठनों का जो अब आंदोलन के पक्ष में लामबंद होने लगे हैं।शासन में
आईएएस अधिकारियों का कार्य होता है कि वह जनहित में व्यवस्थाओं कायदे कानून की उलझनों से बाहर निकाल जनसुलभ बना कर प्रस्तुत करें। उत्तराखंड में ऐसा कम ही उन है यहां नौकरशाही का मिजाज कर्मचारी हित में कम ही देखने को मिलाता है। राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण भी इन खमियों मे सुधार को लेकर शासन को अनेक पत्र लिख चुका है किंतु उनकी सिफारिशों को लेकर भी नौकरशाही का रवैया सकारत्मक नही दिखा है जबकि स्वास्थ्य प्रधिकरण के अध्यक्ष पूर्व नौकरशाह ही है।
उक्त प्रकरण में नौकरशाही के रवैय्ये पर सचिवालय संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी का कहना है कि कर्मचारी हितों को लेकर अधिकारियों का रवैया कभी सकारात्मक नही रहा है। अखिल भारतीय सेवा विशेषकर आईएएस अपनी सेवा के अतिरिक्त अन्य अधिकारियो, कर्मचारियो की पद प्रतिष्ठा से स्वयं को उच्चतर होने की मानसिकता रखते हैं, वह कभी नही चाहते कि उन्हें उनकी सेवा व पद प्रतिष्ठा के अनुरूप प्राप्त होने वाली सुविधाऐ किसी अन्य को मिलें, कार्मिको को बंधुआ मजदूर की श्रेणी मे समझते हैं तथा सदैव एक डिस्टेंस मेनटेन करने की चाहत मे सदैव कार्मिको के मुद्दो पर अडंगे लगाये जाने की कार्य प्रणाली को इनके द्वारा आत्मसात कर लिया गया है और इस प्रदेश को हड़ताली प्रदेश बनाने मे इस कारण से कोई कोर कसर नही छोडी गयी है।
योजना की खमियों के कारण कर्मचारी ही नही बल्कि पेंशनर व उनके परिवार जन भी परेशान है। अगर सरकार ने वक्त रहते ब्यूरोक्रेसी के पेंच नही कसे तो इसका असर 2022 के विधानसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है।