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डॉ.आशुतोष सयाना ने दून मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल पद से दिया त्यागपत्र 

कुलदीप सिंह राणा, देहरादून 

उत्तराखंड का चिकित्सा शिक्षा विभाग दिन प्रति दिन अनिश्चितताओं के गर्त मे डूबता प्रतीत हो रहा है। एक तरफ तो सरकारी मेडिकल कालेज मे काबिल डॉक्टर्स की कमी दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रहीं है। वहीँ खाली पदों के सापेक्ष नियुक्ति मे नये डॉक्टर रूचि भी नहीं ले रहे हैं। इसी बीच सूत्रों से एक बड़ी जानकारी मिल रही है कि राजकीय दून मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल डॉ आशुतोष सयाना ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है। उनको त्यागपत्र दिये लगभग तीन सप्ताह से अधिक का समय बीत चुका। शासन में चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा अभी तक त्यागपत्र पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी है, न ही स्वास्थ्य मंत्री डॉ धनसिंह रावत की तरफ से इस संदर्भ मे कोई प्रतिक्रिया सामने आयी है।डॉ सयाना के उक्त त्यागपत्र को बेहद गोपनीय रखा गया है।

डॉ सयाना के त्यागपत्र ने विभाग पर कई सवाल खड़े कर दिये हैं। सवाल उठ रहे हैं कि क्या विभागीय मंत्री और डॉ सयाना के बीच कोई मतभेद है। क्या विभागीय मंत्री उनके कार्यों से संतुष्ट नहीं है। अब उनकी जगह दून मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल पद पर किसे बैठाया जायेगा। उपरोक्त तमाम सवालों ने त्यागपत्र के उक्त घटनाक्रम को सवालों के कटघरे मे ला दिया है।

अभी तके देखने मे यहीं आया है कि सरकारे चाहे किसी भी दल की रहीं हो डॉ सयाना सभी के चहेते चिकित्सा शिक्षा अधिकारी रहे।कोरोना काल के दौरान राजनेता,जनता, अधिकारी सभी ने डॉ सयाना की काबलियत और कार्यों को सराहा था। जब से राज्य मे चिकित्सा शिक्षा विभाग का गठन किया गया है डॉ सयाना इसके आधार स्तम्भ बने हुये है। इस्तिफे के पीछे के कारणों मे यह बात भी निकल कर आ रहीं है कि राजनितिक संरक्षण प्राप्त कुछ डॉक्टर्स की सीआर मे कमियों के लेकर डॉ सयाना के उपर राजनितिक दबाव बनाया जा रहा था डॉ आशुतोष सयाना से ज़ब फोन पर त्यागपत्र के कारणों के बारे मे जानना चाहा तो वे जवाब टाल गये लेकिन त्यागपत्र से उन्होंने इनकार भी नहीं किया जिससे यह तो स्पस्ट हो गया की गेंद अब शासन और सरकार के पाले मे हैं।

देखना यह है कि डॉ सयाना के उक्त त्यागपत्र पर निर्णय क्या होता है। लेकिन उक्त घटनाक्रम ने चिकित्सा शिक्षा विभाग पर सवालों और ख़बरों का सिलसिला जरूर शुरू कर दिया है।

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