-पलटन बाजार के दुकानदारों ने अतिक्रमण हटाओ अभियान की टाइमिंग पर उठाये सवाल।
-क्या फेस्टिवल सीजन के बाद तक नही टाला जा सकता था अभियान।
-कोरोना काल मे लॉक डाउन से टूट चुकी है व्यापारियों की कमर।
फोटो में दिख रहे दृश्य अफगानिस्तान या बेरूत के नही है न ही यहाँ कोई बमबारी हुई है।
यह दृश्य है देहरादून के प्रसिद्ध पलटन बाजार का। सुबह से खरीदारों की आवजाही से गुलजार रहने वाला पलटन बाजार बुधवार को बेहद वीरान दिखायी दिया। नवरात्रि एवं विवाह के सीजन शुरू होने के कारण पिछले कुछ दिनों से लोग सुबह से ही बाजार में उमड़ने लगे थे। दुकानदरों ने भी बाजार को सजाना शुरू कर दिया था।
लेकिन बाजार की सारी रौनक अतिक्रमण हटाओ अभियान की तोड़ फोड़ की भेंट चढ़ गया। कोरोना की मार झेल रहे व्यापारियों के बाद सरकार द्वारा अतिक्रमण को लेकर शुरू की गई कार्यवाही से व्यापारियों बेहद आक्रोशित नजर आये। नवरात्रि के त्योहार से व्यपारियों को कुछ उम्मीदें जगी थी जिसे ठीक दो दिन पहले पलटन बाजार में प्रशासन द्वारा तोड़ फोड़ की कार्यवाही ने बर्बाद करने का काम कर दिया है शासन प्रशासन की इस कार्यवाही पर पलटन बाजार के व्यापरियों सरकार के इस असंवेदनशील रवैये पर अपनी अपनी नाराजगी प्रकट की।
व्यापारी, सरकार और शासन की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े करते नजर आये।
युवा व्यापारी गुरप्रीत आक्रोशित होकर कहते है कि यह तो मनमानी है लॉक डाउन के कारण व्यापारी टूट चुका है दो साल पहले अधिकारी एक दिन का नोटिस देकर गए थे आये आज हैं। यह सरासर गुंडागर्दी है। मैंने प्रधानमंत्री की मुद्रा योजना में लोन पास कराया था कि कुछ नया करूँगा। ऐसे में क्या व्यापार होगा।
अमनदीप कहते है कि कोरोना लॉक डाउन के बाद नवरात्रि फेस्टिवल सीजन में थोड़ी आस जगी थी, सरकार इस कार्यवाही को फेस्टिवल सीजन के बाद भी कर सकती थी।
दुकानदार नितिन अरोड़ा कहते हैं कि कोर्ट के आदेश के बाद दो साल पहले अधिकारी निशान लगा कर गए थे तोड़ने आज आये। जब अतिक्रमण हो रहा होता है तब यह अधिकारी मंत्री कहाँ सोये रहते हैं।
श्रीनगर से खरीदारी करने देहरादून आयी सविता बोहरा पलटन बाजार के हालत देख कर असमंजस में नजर आयी, उनका कहना था कि इतनी दूर से त्योहार की खरीदारी के लिए यहां आए हैं बाजार में हर तरफ तोड़फोड़ हो रही हैं। अतिक्रमण हटाना चाहिये पर यह उचित समय नही है कार्यवाही का।
फुटवेयर व्यापारी मन्नू डोरा सरकार के इस रवैये से बेहद नाराज हो कहते हैं कि त्योहार को लेकर एक आस जगी थी कि बैंक लोन की क़िस्त निकल जायेगी। इस सरकार ने कहीं का नही छोड़ा।
परिवार के साथ खरीदारी करने आये डॉ विवेक कहते है कि यह तो व्यापारी को परेशान करने वाला काम है क्या इसे फेस्टिवल के बाद नही किया जा सकता था।
अपनी शादी की खरीदारी करने आयी नेहा बाजार के हालात को देख कर बेहद दुखी दिखी 15 दिन के बाद शादी है ऐसे में कहाँ से सामान खरीदे। हर तरफ तो तोड़फोड़ है।
सर्राफा की दुकान में कार्य करने वाले प्रेम सिंह कहते हैं कि लॉक डाउन के कारण 6 महीने से सैलरी का रोना हो रखा था नवरात्रि में एक आस जगी थी इस संवेदनहीन सरकार ने उसे भी खत्म करने में कोई कसर नही छोड़ी है। अब बीजेपी को कभी वोट नही दूंगा।
दुकानदारों में व्यापारी नेताओं का लेकर भी बेहद आक्रोशि है। कोरोना में नाम पर नेतागिरी चमकाने वाले नेता आज कहीं नजर नही आये। तोड़फोड़ के कारण बाजार में हर तरफ धूल और मालवा बिखरा हुआ नजर आ रहा है। ऐसे में उक्त कार्यवाही पर दुकानदार सरकार से सवाल कर रहे हैं कि जिस प्रकार वोट बैंक के लिए आप नदियों के किनारे और चाल-खाल में अवैध रूप से बसे लोगों के लिए अध्यादेश ले आये थे। हाइ कोर्ट के निर्णय के बावजूद पूर्व मुख्यमंत्रीयों के सरकारी आवास का किराया माफ करने के लिए अध्यादेश जारी किया, क्या व्यापारी के लिए कुछ दिन की मोहलत नही दी जा सकती थी ?
प्रचण्ड बहुमत की सरकार की क्या यह संवेदनशीलता है ? दो साल तक कहाँ सोया हुआ था यह शासन प्रशासन? जो आज जगा है।