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आयुष चिकित्साभ्यासियों के रजिस्ट्रेशन रद्द कर सूबे मे आयुर्वेद के विस्तार की संभावना तलाशती उत्तराखंड सरकार

कुलदीप राणा /देहरादून
उत्तराखंड सरकार आयुर्वेद को लेकर बड़े बड़े दावे करती नहीं थकती है, हाल मे देहरादून मे संपन्न विश्व आयुर्वेद कांग्रेस मे विश्व मे भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की स्वीकार्यता को लेकर बड़े बड़े भाषण सुनने को मिले।उत्तराखंड के आयुष मंत्री,मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने भी अपने सम्बोधन में कहा उत्तराखंड योग एवं आयुष की भूमि है उनकी सरकार राज्य मे आयुर्वेद की अपार संभावनाओं को लेकर गंभीरता से प्रयास कर रही है, लेकिन सरकार के प्रयास तो उसी वक्त संदेह के कटघरे में आ गये थे ज़ब अक्टूबर माह में उत्तराखंड शासन के एक आदेश के बाद राज्य मे आयुर्वेद चिकित्सा अभ्यास कर रहे लगभग 400 आयुष चिकित्सा अभ्यासियों के रजिस्ट्रेशन को रद्द कर दिया गया। यह आयुर्वेद चिकित्सा अभ्यासी उत्तराखंड के विभिन्न जिलों मे ग्रामीण स्तर तक जनता को आयुर्वेद पद्धति दवाइयों से उपचार प्रदान करते आ रहे थे। इन सभी आयुष प्रैक्टिसनर्स ने आयुर्वेद एवं यूनानी मेडिसन में चार वर्षीय डिप्लोमा कोर्स “डीएएम” व “डीयूएम” किया हुए था। आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यवस्था मे इन्हे आयुर्वेद शास्त्री व आयुर्वेद भास्कर ” के नाम से पुकारा जाता है। यह डिप्लोमाधारी सिर्फ आयुर्वेद मेडिसिन के क्षेत्र मे ही अभ्यास कर सकते थे बीएएमएस डॉक्टर्स की भांति आयुष चिकित्सा के अंतर्गत, शल्य ,अस्थि ,गयनों, मेडिसिन,ईएनटी, फर्माकोलोजी आदि क्षेत्रों में नहीं ।
अब सवाल उठता है मात्र आयुर्वेद मेडिसिन के क्षेत्र में रोगियों के उपचार का कार्य कर रहे सूबे के इन आयुर्वेद डिप्लोमा धारियों को मुख्यधारा से प्रथक कर सरकार उत्तराखंड मे आयुर्वेद के विस्तार की कौन सी सम्भावना देख रही है।

आयुर्वेद भारत की प्राचीन उपचार पद्धति है जों प्राकृतिक जड़ी बूटीयों और पारम्परिक पद्धतियों से उपचार पर आधारित है। विडंबना देखिये एक तरफ तो उत्तराखंड मे आयुर्वेद से सम्बंधित बीएएमएस डॉक्टर्स सरकार से रोगियों को आयुर्वेदिक के साथ साथ एलोपैथिक दवाई निर्देशित करने की अनुमति की मांग कर रहे है वही आयुर्वेद एवं यूनानी मेडिसन डिप्लोमाधारी जो आयुर्वेदिक दवाइयों से रोगियों को प्राथमिक उपचार प्रदान करने का प्रयास करते है उनका रजिस्ट्रेशन रद्द कर आयुर्वेद चिकित्सा की मुख्यधारा से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा हैं।
सरकार मे बैठे नीति निर्माता बतायें कि उत्तराखंड मे आयुर्वेद का विस्तार आयुर्वेदिक डॉक्टर्स द्वारा एलोपैथिक दवाइयाँ निर्देशित करने से होगा या आयुर्वेदिक दवाइयों से रोगियों का उपचार कर आयुर्वेदिक चिकित्सा अभ्यास करने वालों को मुख्यधारा में लाकर संरक्षित करने से? क्या इस प्रकार से प्रदेश मे आयुर्वेद की स्थिति मे सुधार संभव होगा ?

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