शासन देता रहा नोटिस और आरोपी डॉ जे एन नौटियाल को मुख्यमंत्री ने फिर दिया दायित्व

क्या दंडात्मक कारवाही के बजाये आरोपी को संरक्षण दे रही धामी सरकार
-आयुर्वेद में “एमडी” अध्यन्न संबंधी प्रकरण में जानबूझकर तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करने के आरोपी हैं डॉ जे एन नौटियाल.
-एक्ट में दी गयी व्यवस्था से इतर वित्तीय लाभ लेने संबंधी प्रकरण में शासन लगा चुका था रोक लगा.

कुलदीप सिंह राणा/देहरादून
एक तरफ तो राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जनसभाओं और मीडिया में भ्रष्टाचार पर सख्त कार्यवाही के बड़े बड़े दावे करते नहीं थकते हैं। दूसरी तरफ उनके कार्यालय खुले आम आरोपियों को संरक्षण मिल रहा है। मामला भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड के अध्यक्ष की कुर्सी पर पुनः डॉ जे एन नौटियाल को बैठायें जाने से जुडा है।हालांकि शासन के आरोपों और गतिमान कार्यवाही के बावजूद वर्ष 2022 में मुख्यमंत्री द्वारा डॉ नौटियाल को पहले भी अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाये जा चुका था। अनेक प्रकरण में डॉ नौटियाल का नाम उछलता रहा है, खबरें प्रकाशित होती रही है, अधिकारी नोटिस भेज खानापूर्ति करते रहे। जिसे सत्ता का संरक्षण प्राप्त हो उसका शासन में बैठे अधिकारी भी क्या कर सकते है।

लिंक जरूर देखे…..

https://risinguttarakhand.com/kya-shapathpatra-me-tathyon-ko-tod-marod-kr-prstut-karne-ke-aaropi-dr-jn-noutiyal-ko-bacha-rahi-sarkar/

तमाम उठापटक के बीच भारतीय चिकित्सा परिषद में विगत माह 22 मार्च को डॉ नौटियाल का 03 वर्षीय कार्यकाल समाप्त हो गया। लेकिन कमाल देखिये मुख्यमंत्री की मेहरबानी से 10 दिन के भीतर ही डॉ नौटियाल पुनः अध्यक्ष की कुर्सी काबिज भी हो गये।


आपको बताते चले कि डॉ नौटियाल की आयुर्वेद विभाग में नौकरी और रिटायर्मेंट के बाद परिषद में अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठायें जाना दोनों सवालों के घेरे में रहा हैं। राजकीय सेवा में रहते हुये वर्ष 2017 में रिटायर्मेंट से लगभग 04 वर्ष वर्ष पूर्व वित्त नियमावली को ठेंगा दिखा निजि हित में जानबूझ कर तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर शासन के समक्ष अनुबंध पत्र प्रस्तुत करके आयुर्वेद में “एम डी ” की डिग्री हासिल करने हेतु अध्यन्न अवकाश स्वीकृत करवा लेने संबंधी आरोप हो या नियम विरुद्ध तरिके से परिषद से लाखों रूपये वित्तीय, वाहन व कार्यालयी लाभ लेने का प्रकरण हो , डॉ नौटियाल पर मुख्यमंत्री कार्यालय हमेशा मेहरबान दिखा है।


अक्सर देखा गया है कि जिसे सत्ता का संरक्षण प्राप्त हो वह अपनी कारगुजारियों से कभी बाज नहीं आता है। उसे अपने संरक्षणकर्ता सत्ताधीश की राजनितिक छवि की भी परवाह नहीं होती है ऐसा ही कुछ भारतीय चिकित्सा परिषद में भी देखने को मिला, अध्यक्ष बनने तत्काल बाद ही डॉ नौटीयाल ने अपने राजनितिक आकाओं की सरपरसती में भारतीय चिकित्सा परिषद के एक्ट की व्यवस्थाओं व वित्त एवं गोपान के निर्देशों को अपने जूते की नोक पर रखते हुये मंत्री परिषद में सूचिबद्ध दायित्वधारियों की भांति अपने लिये लाखों रूपये वेतन भत्ते, राजकीय वाहन,संवर्ती स्टॉफ आदि जारी भी करवा लिया,जिसका बोझ शासन के बजाये वित्तीय संकट के दौर से गुजर रहे परिषद के ऊपर ही पडा।
यहाँ आपको बता दें कि परिषद के सयुंक्त प्रान्त एक्ट 1939 के नियमों के अनुसार अध्यक्ष का पद राजनितिक न होकर कैडर आधारित है और इसमें किसी भी प्रकार के वेतन मानदेय भत्ते व अन्य सुविधाओं की व्यवस्था नहीं है,उक्त संदर्भ में शासन के गोपन विभाग ने भी अपनी राय में स्पस्ट किया है कि भारतीय चिकित्सा परिषद के अध्यक्ष का पद गोपन के दायरे में न होने के कारण दायित्वधारियों को दी जाने वाली सुविधाओं और मानदेय संबंधी शासनादेश से अच्छादित नहीं होता है।


हमारे संवाददाता द्वारा पूर्व में उक्त प्रकरण पर जब शासन के उच्च अधिकारी से पूछा गया गया तो अपर सचिव आयुष डॉ विजय कुमार जोगदंडे ने नियमानुसार कार्यवाही करते हुये तत्काल डॉ नौटियाल द्वारा परिषद से ली जा रही समस्त सुविधाओं पर रोक लगाने के आदेश जारी कर दिये थे, लेकिन सत्ता के संरक्षण में पोषित हो रहे डॉ नौटियाल का अहंकार देखिये कि अपर सचिव के आदेशों के बावजूद राजकीय वाहन कभी परिषद को वापस नहीं लौटाया और निजि कार्यों में लगातार उसका उपयोग करते रहे।
और एक दिन मुख्यमंत्री के विशेष कृपा पात्र डॉ जे एन नौटियाल को पुनः समस्त सुविधाओं को प्रदान किये जाने के आदेश जारी कर दिये जाते हैं।
एमडी अध्यन्न अवकाश संबंधी प्रकरण पर जब जब शासन के उच्च अधिकारियों ने डॉ नौटियाल पर नियमानुसार कार्यवाही के नोटिस जारी किये। मुख्यमंत्री कार्यालय से कार्यवाही न किये जाने का दबाव बनता रहा। शासन के कर्मचारियों ने बताया कि एक बार तो डॉ नौटियाल भाजपा नेत्री अपनी पत्नी विमला नौटियाल को लेकर शासन में उन्हें धमकाने तक पहुंच गये थे।
हद तो देखिये कि चुनाव में भय न भ्रष्टाचार का नारा देने वाली प्रदेश की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री ने दंडात्मक कार्यवाही के बजाय डॉ नौटियाल को भारतीय चिकित्सा परिषद के अध्यक्ष की कुर्सी पर फिर से बैठा दिया।
बार बार शासन के समक्ष मुद्दा उठाने के बावजूद अधिकारी अब डॉ नौटियाल पर कार्यवाही करने से सब बच रहे है।
वहीं भ्रष्टाचार पर सख्त कार्यवाही की मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की बातें चिराग तले अंधेरा साबित हो रही है। या फिर हो सकता है कि डॉ नौटियाल के प्रकरण मुख्यमंत्री धामी के सुशासन और भ्रष्टाचार के दायरे में आता ही न हो।

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