कुलदीप राणा /देहरादून
संगीत मे लोकप्रियता और विरोध एक दूसरे को साथ लिये होते है संगीत साथ होने से लोकप्रियता भी चार गुनी हों जाती है तो कभी कभी विरोध भी लोकप्रिय हो जाता है सांस्कृतिक क्षेत्र मे राजनीति किस प्रकार क्षेत्र विशेष के सामाजिक तानेबाने को प्रभावित करती है यह ऋषिकेश निकाय चुनाव में प्रत्याशियों एवं लोक गायकों को लेकर जनता मे उभर रहे अंतर्विरोधों से समझा जा सकता है।लोक गायिकी राज्य की क्षेत्र विशेष की पहचान होती है लोकगीत एवं गायक दोनों के साथ जनभावनायें जुडी होती है। प्रथक उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन के दौरान नरेन्द्र सिंह नेगी द्वारा रचा और गाया गीत “उठा जगा उत्तराखण्डीयूं सों उठाणे बगत ऐगी ” शायद आज भी राज्यवासी भूले नहीं होंगे। उक्त गीत ने राज्य निर्माण के आंदोलन को ऊर्जा से भर दिया था लोक गीत एवं गायकों की पहचान क्षेत्रीय अस्मिता से सीधे जुडी होती है। जो कई सामजिक और राजनितिक समीकरणों को प्रभावित करती है। यही कारण है कि अक्सर चुनाव कार्यकर्मो में राजनितिक दल अपने प्रत्याशी के पक्ष मे मतदाताओं को लुभाने के लिये व भीड़ जुटाने के लिये लोक गायकों एवं कलाकारों को अपने मंच पर आमंत्रित करते है। उस वक्त उसका उद्देश्य सांस्कृतिक प्रचार न होकर खुद का प्रचार होता है।वर्तमान मे प्रदेश मे हों रहें निकाय चुनाव मे भी कुछ ऐसा ही देखने मे आ रहा।

भाजपा प्रत्याशी शम्भू पासवान के साथ मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल
ऋषिकेश नगर निगम के मेयर पद हेतु भाजपा प्रत्याशी शम्भू पासवान ने अपने चुनावी कार्यक्रम के लिये विख्यात लोक गायिका संगीता ढौंडियाल को आमंत्रित किया और सोशल मीडिया पर इसका प्रचार भी शुरू हों गया।इसी बीच सोशल मीडिया में ही भाजपा प्रत्याशी का राज्य निर्वाचन आयोग में जमा नामांकन पत्र मे शैक्षिक योग्यता से जुडा पृष्ठ तेजी वायरल होने लगा। जिसमे जानकारी निकल कर आयी कि अपने चुनावी भाषणों मे भाजपा प्रत्याशी शम्भू पासवान जो खुद को टिहरी विस्थापित बता रहें है दरसल वह वर्ष 1983 मे “बिहार राज्य “के रा. म. वि. मठिया से आठवीं कक्षा उत्तीर्ण है।

जिसके बाद से क्षेत्र मे उत्तराखंडी सेंटिमेंट प्रभावी होने लगे और सोशल मीडिया मे यह संदेश तेजी से पर्वतीय मतदाताओं के बीच प्रसारित होने लगा।जिसके बाद अधिकांश लोगों द्वारा संगीता ढौंडियाल से आग्रह किया गया कि वह उस कार्यक्रम में न जाएँ।लोक गायिका ने अपने प्रशंसकों की बात का मान रखते हुये उक्त राजनितिक मंच से दूरी बना लेना उचित समझा, उनके इस निर्णय के बाद सोशल मीडिया में बायकाट और शाबास संगीता ढौंडियाल सम्बन्धी राजनितिक पोस्ट वार शुरू हो गया।

इसी दौरान एक अन्य लोक गायक मंगलेश डंगवाल द्वारा शम्बू पासवान के साथ उनके मंच पर अपनी सांस्कृतिक प्रस्तुति दे डाली गयी। जिसे लेकर विरोध के स्वर उठने लगे है।उक्त कार्यक्रम मे उत्तराखंड सरकार मे मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल व सुबोध उनियाल भी उपस्थित रहे।कार्यक्रम के बाद मंच से मंगलेश डंगवाल ने प्रेमचंद्र अग्रवाल से शिकायत की, कि उक्त कार्यक्रम में आने को लेकर सोशल मीडिया में उनके परिवारजनो के ऊपर गलत टिप्पणीयां की जा रही है और उन्हें धमकाया जा रहा है। जिसके बाद प्रेम चंद्र अग्रवाल ने उन लोगों की तरफ से मंगलेश से क्षमा मांगते देखे गये।

एक अन्य निर्दलीय प्रत्याशी दिनेश चंद्र मास्टर के राजनितिक मंच मे गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी की सांस्कृतिक उपस्थिति भी चर्चाओं के केंद्र मे है। जिसमे जुटी भीड़ ने प्रतिद्वंदियों के होश उड़ा रखे है। चुनावी राजनितिक मंच पर उक्त दोनों लोकगायकों की चंद घंटो की प्रस्तुति और संगीता ढौंडियाल के इंकार ने सोशल मीडिया पर एक अलग बहस को जन्म दे दिया है जिसमे हर कोई कमैंट्स कर अपनी अपनी राय दे रहा है।

गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी के कार्यक्रम मे उमड़ी भीड़
ऐसा पहली बार नहीं है ज़ब लोकगायकों ने राजनितिक मंच पर अपनी प्रस्तुतियां दी हों।लेकिन भाजपा प्रत्याशी के बिहार कनेक्शन के बाद जो सेंटीमेंट्स उभर कर सामने आये है उसने बहस को जंगल की आग मे हवा देने जैसा काम किया है

उक्त घटनाक्रम पर संगीता ढौंडियाल ने अपना पक्ष रखते हुये कहा कि वह उत्तराखंड की लोक कलाकार हैँ मुझे यहाँ के लोगों ने बनाया है हमने राज्य आंदोलन को जिया है लोगों ने मुझसे लगातार सम्पर्क कर उक्त कार्यक्रम में न जाने का आग्रह किया। लोकतंत्र मे मैं किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति के खिलाफ नहीं हूँ। लेकिन मै पर्वतीय जनभावनाओं के विरुद्ध भी नहीं जा सकती हूँ। सोशल मीडिया पर हो रहे हंगामें के बीच नरेन्द्र सिंह नेगी ने भी मीडिया में अपनी बात रखते हुये कहा कि मुझे एक सेंटेंस बता दीजिये जिसमे मैंने उनके ( दिनेश चंद्र मास्टर )समर्थन में कुछ कहा हो, मुझे यहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम करने के लिये बुलाया गया मैंने अपने गीत गाये। मेरा काम गीत गाने का है सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने का है।प्रचार मै अपनी संस्कृति का करता हूँअपनी लोक भाषा का करता हूँ मैंने आरम्भ मे कहा था कि मैं यहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम करने आया हूँ बाकि इन्होने यह कार्यक्रम क्यों रखा है उसकी वजह यह लोग बताएँगे।
यह बात तो सब जानते हैँ कि राजनीति मे सब बातें कही नहीं जाती है कुछ सन्देश मंच पर व्यक्ति की उपस्थिति भी दिये जाते है। क्या जनता चुनावी मंच और संस्कृतिक मंच के अंतर को नहीं समझती होंगी। निर्दलीय प्रत्याशी दिनेश चंद्र मास्टर के मंच पर नरेन्द्र सिंह नेगी की उपस्थिति चुनाव मे अपना काम कर गयी है। हालांकि कुछ लोग यह भी सवाल उठा रहें है कि बुलाने पर क्या नेगी जी भाजपा प्रत्याशी शम्भू पासवान के मंच से भी अपनी प्रस्तुति देते? कुछ लोगों का कहना है कि प्रथक उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन को नरेन्द्र सिंह नेगी के गीतों ने ऊर्जा से भर दिया था उनकी उपस्थिति से चुनाव प्रभावित न हो क्या यह संभव है! यह बात जरूर है कि चुनावी मंच से किसी ने भी राजनितिक पक्ष या विरोध के गीत नहीं गाये हैँ। किसी ने क्षेत्रीय जनभावनाओं का सम्मान करते हुये न कहा तो किसी ने मंच का उपयोग किया,दृष्टिकोण सबका अपना-अपना है।खैर चुनाव तो कल निपट जायेंगे लेकिन लोक कलाकारों को लेकर जनता के बीच उभरा यह मतभेद क्या रंग दिखायेगा।