कुलदीप सिंह राणा, देहरादून
“भाइयों और बहिनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की हैं। इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं हैं”।
-48 वर्ष पूर्व आज ही के दिन वह सुबह थी जब 26 जून 1975 को प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने आकाशवाणी के माध्यम से देश कों यह संदेश दिया।इसी के साथ लागू हुआ देश में आपातकाल।
न कोई युद्ध न ही पाकिस्तान की भांति कोई सैन्य तख्तापालत,बस इंदिरा गाँधी के विरुद्ध आया एक न्यायिक निर्णय और इसके साथ लागू हुआ देश में आजाद भारत का पहला आपातकाल।
आपातकाल जिसकी बुनियाद 12 जून 1975 के इलाहबाद कोर्ट के उस निर्णय के बाद पड़ी जिसमे रायबरेली से इंदिरा गाँधी के निर्वाचन कों चुनौती मिली।
वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गाँधी रायबरेली सीट से चुनाव जीती थी इस जीत को चुनाव में उनके विपक्षी रहे सयुंक्त सोशलिस्ट पार्टी के राजनारायण सिंह ने इलाहबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी। उक्त चुनाव में इंदिरा गाँधी कों 1लाख 83 हजार वोट मिले थे जबकि राजनारायण कों 71 हजार 499 वोट मिले।चुनाव के उक्त निर्णय कों चुनौती देते हुये राजनारायण ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में निवेदन किया कि इंदिरा गाँधी ने चुनाव में अपने पक्ष सरकारी मशीनरी के दुरपयोग किया हैं।
चीफ जस्टिस जगमोहन सिन्हा की बेंच में यह सुनवाई शुरू हुई केस लम्बा चला इसी दौरान 18 मार्च 1975 कों कोर्ट के आदेश पर इंदिरा गाँधी कों कटघरे में खड़ा होना पड़ा। उस दिन जस्टिस लाल सिन्हा ने स्पस्ट किया था कि कोर्ट के अंदर नियमानुसार इंदिरा गाँधी से समान्य नागरिक की तरह व्यवहार किया जाये। प्रधानमंत्री के प्रोटोकाल जैसा न कोई स्वागत में होगा और न ही कोर्ट में आने पर कोई खड़ा होगा, प्रधानमंत्री के सुरक्षाकर्मी भी वहां उपस्थित नहीं रहेंगे।
मई 1975 में मामले की सुनवाई सम्पूर्ण हुई और 12 जून को निर्णय सुनाये जाने का दिन तय हुआ।चीफ जस्टिस सिन्हा ने इंदिरा के निर्वाचन कों निरस्त कर दिया साथ ही 6 वर्ष के लिये उन्हें किसी भी संवैधानिक पद के अयोग्य घोषित कर दिया गया।
जिसके बाद शुरू होती हैं देश में आपातकाल की कहानी….
कोर्ट के उक्त निर्णय के बाद इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की सम्भावना समाप्त हों गयी थी और वह इस्तिफे का मन बना चुकी थी। किन्तु जब यह बात इंदिरा के बेटे संजय गाँधी को पता चली उन्होंने तुरंत अपनी माँ से सम्पर्क किया और उन्हें इस्तीफा देने से रोका।हाई कोर्ट के उक्त निर्णय के विरुद्ध इंदिरा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
24 जून कों सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस कृष्णा अय्यर ने अपने आदेश में हाई कोर्ट के निर्णय पर रोक लगा दी साथ की प्रधानमंत्री पद पर इंदिरा गाँधी के अनेक अधिकार भी सीज कर दिये जिसमे संसद में बहस से लेकर वोट तक का अधिकार शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इंदिरा गाँधी और उनके पुत्र संजय गाँधी कों रास नहीं आया।
वही दूसरी तरफ दिल्ली के रामलीला मैदान में एक जनसभा में एक नारा गूंजा….
“सिंहासन खाली करो कि जनता आती हैं “
महंगाई और भर्ष्टाचार के मुद्दे पर जनता में सरकार के खिलाफ गुस्सा था जिसके विरुद्ध एक विशाल रैली का आयोजन किया गया। जय प्रकाश नारायण (जेपी ) कों सुनने उस दिन लगभग 5 लाख लोग आये थे।
आपातकाल की निर्णायक स्थिति ….
1सफदरजंग रोड पर आवास में इंदिरा गाँधी, पश्चिम बंगाल के सीएम सिद्धार्थ शंकर रे के साथ मीटिंग कर रहीं थी वहीं दूसरे कमरे में संजय गाँधी, आर के धवन और संसदीय राज्यमंत्री ओम मेहता के साथ गिरफ्तार किये जाने वाले विपक्षी नेताओं की सूची तैयार कर रहे थे साथ ही यह भी तय किया गया की प्रिंटिंग प्रेस और कोर्ट की बिजली काट दी जाये। इंदिरा गाँधी और सिद्धार्थ रे ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से इमरजेंसी के दस्तावेज पर हस्ताक्षर ले लिये थे, जिसके उपरांत 26 की सुबह रेडियों से राष्ट्र कों दिये अपने सन्देश में इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। इंदिरा ने कहा “इस शांति कों हमें बनाये रखना हैं, और हमको यह समझना हैं कि लोकतंत्र की भी हद होती हैं जिसको पार नहीं कर सकते”।
आपातकाल का विरोध करने वाले जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई,अटलबिहारी बाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, जार्ज फर्नान्डिस, चंद्रशेखर जैसे शीर्ष विपक्षी नेताओं कों गिरफ्तार कर लिया गया। सभी राज्यों के मुख्यसचिव की गिरफ्तारी के आदेश दे दिये गये। ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया कों तिहाड़ जेल में रखा गया।अचानक इंदिरा गाँधी के खिलाफ बोलना जुर्म हों गया पुलिस सबको गिरफ्तार कर जेलों में ठूसने लगी। लगभग एक लाख लोगों कों “मेनटेनेस ऑफ़ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट” (मीसा) के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ समेत 26 संगठनों कों एंटी इण्डिया कहकर प्रतिबंधित कर दिया गया। प्रेस पर पाबंदी लग दी गयी सरकार विरोधी खबर छपने पर गिरफ़्तारी हों जाती थी।25जून 1975 से 19 जनवरी 1977 तक भारत में इंदिरा द्वारा द्वारा आपातकाल लागू रहा। जनता में आपात काल कों लेकर जानकारी के आभाव था जिससे विरोध ज्यादा पनप नहीं सका क्योंकि अधिकांश जानकर विपक्षी नेताओं कों पहले की जेल में डाल दिया गया था और अखबारों पर प्रतिबंध लागू कर दिया गया था।
इसी लिये इंदिरा गाँधी ने खुद कहा कि जब मैंने ईमरजेंसी लगाई एक कुत्ता भी नहीं भौका था।