कुलदीप सिंह राणा
देहरादून :27 जुलाई को जारी शासन के आदेश का भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड के अध्यक्ष डॉ जनानंद नौटियाल पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा हैं। अप्रैल 2022 को परिषद का अध्यक्ष नियुक्त होने के बाद से डॉ नौटियाल द्वारा लगातार नियम विरुद्ध तरिके से लाखो रुपये निजि मानदेय, भत्ते, वाहन समवर्ती स्टॉफ आदि पर खर्च किया जा रहा था। जिसका बोझ प्रतिमाह परिषद के कोष पड़ रहा था।
उक्त प्रकारण जब शासन में अपर सचिव आयुष डॉ विजय जोगदंडे के संज्ञान में आया तों उन्होंने एक्ट की व्यवस्थाओं के आधार पर डॉ नौटियाल के अनुचित मानदेय व अन्य सुविधाओं पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के आदेश परिषद के रजिस्ट्रार को 27 जुलाई 2023 को जारी कर दिये ।
परिषद के रजिस्ट्रार नर्वदा गुसाईं ने भी शासन के आदेश का पालन करते हुये डॉ नौटियाल की समस्त सुविधाओं रोक लगा दी।साथ ही डॉ नौटियाल द्वारा उपयोग में लाये जा रहे परिषद के राजकीय वाहन को कार्यालय में जमा करने हेतु लिखित में निवेदन पत्र जारी किया। लेकिन डॉ नौटियाल पर उक्त शासनादेश व रजिस्ट्रार के निवेदन का कोई असर नहीं हुआ जिसके बाद रजिस्ट्रार द्वारा दोबारा से लिखित में डॉ नौटियाल से राजकीय वाहन को कार्यालय में जमा कराने हेतु निवेदन किया गया।
लेकिन दो माह से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी डॉ नौटियाल द्वारा वाहन परिषद के कार्यालय में जमा नहीं कराया गया हैं। बल्कि “उत्तराखंड सरकार” लिखें उक्त वाहन का निजि उपयोग करते हुये वह प्रदेश की सड़कों पर देखे जा रहे हैं। जिसे वह स्वंम चलाते देखे गये हैं। राजकीय वाहन का इस प्रकार दुरूपयोग परिवहन नियमावली के अनुसार गैर कानूनी श्रेणी में माना गया हैं।
ऐसे में सवाल परिषद के रजिस्ट्रार की कार्यशैली पर भी उठ रहे हैं जो कार्यालय में परिषद के एक्ट की व्यवस्था व शासन के उक्त आदेश का अनुपालन सुनिश्चित नहीं करवा पा रहीं हैं
उक्त संदर्भ में जब रजिस्ट्रार नर्वदा गुसाईं से पूछा गया तों उनका कहना हैं कि शासनादेश के अनुपालन में वाहन को उपयोग न करने व कार्यालय में जमा करने हेतु वह दो बार लिखित रूप से अध्यक्ष को सूचित कर चुकी हैं,और वर्तमान वस्तु स्थिति को वह शासन के संज्ञान में भी ला चुकी हैं।
रजिस्ट्रार द्वारा दो-दो बार लिखित रूप से कहने के बावजूद भी राजकीय वाहन जमा न कर उसका लगातार उपयोग करना डॉ जनानंद नौटियाल की मंशा को कटघरे में खड़ा कर रहा है? अब चूँकि अध्यक्ष की नियुक्ति शासन द्वारा ही की गयी हैं लिहाजा शासन के आदेशों की अवहेलना करने पर कार्यवाही भी शासन को ही सुनिश्चित करनी होंगी।
वही यह भी देखने में आया हैं कि डॉ नौटियाल लगभग रोजाना शाम को छुट्टी होने के समय कार्यालय , रजिस्ट्रार भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड पहुँच जाते हैं और कर्मचारियों से फाइले मांग उनसे सवाल जवाब करने लगते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बोर्ड व संकाय की बैठक से इतर अध्यक्ष डॉ जनानंद नौटियाल का परिषद् कार्यलय में आना व प्रशासनिक फाइलें देखना एक्ट की व्यवस्थाओं के अनुरूप नही कहा जा सकता हैं। अब सवाल यह उठता हैं कि बिना राजनितिक संरक्षण के क्या कोई व्यक्ति इतना साहस कर सकता हैं कि वह खुद को नियम कानून व शासन व्यवस्था से भी उपर समझने लगे और सचिवालय में बैठे आला अधिकारियों के आदेश की अवहेलना करने लगे?डॉ नौटियाल के यह कारनामें राज्य सरकार के साथ साथ मुख्यमंत्री जोकि आयुर्वेद के विभागीय मंत्री भी हैं की छवि पर भी नकरात्मक प्रभाव डाल रहें हैं।
हालाँकि डॉ नौटियाल के कारनामो की फेहरिस्ट छोटी नहीं हैं। सूचना के अधिकार में प्राप्त दस्तावेजों से निकल कर आ रही सूचनाएं राजकीय सेवा रहते हुए डॉ नौटियाल द्वारा किये गये अनेक कारनामें उजागर कर रही हैं। उनके इन कारनामो में आयुर्वेद निदेशालय के साथ-साथ सचिवालय के अनेक अधिकारियों का संरक्षण भी निकल कर सामने आ रहा हैं।
आगे भी जारी……….